Friday, April 6, 2012

जाने ऐसा क्यों होता है मेरे साथ।





जाने ऐसा क्यों होता है 
मेरे साथ
 मेरे सपने रेत की तरह 
मुठ्ठी से पिसल  जाते है .
फिर संजोती हूँ , 
और  बिखर जाते है ।


जाने ऐसा क्यों होता है 
मेरे साथ
 किनारे पर आकर डूबती है
 मेरी नाव ,
तैर कर पार आना चाहती हूँ
की लहरे  बसा लेती है अपना गॉंव

जाने ऐसा क्यों होता है 
मेरे साथ
जीना  चाहती हूँ 
पर मरने पर मजबूर कर देते है लोग 
मरके भी सांसे लेती हूँ 
फिर भी जिंदगी से दूर कर देते है लोग

जाने ऐसा क्यों होता है 
मेरे साथ।
फूल सी हूँ पर काँटों भरी है राह 
धूप ही धूप है पर नहीं कोई छांव 
छांव की तलाश में आगे बड जाती हूँ 
कांटे भी छूट जाते है नहीं है कोई साथ  

जाने ऐसा क्यों होता है 
जाने ऐसा क्यों होता है  
जाने ऐसा क्यों होता है  ।
मेरे साथ।